धर्म के धंधे में पैसा है, इच्छा
पूर्ति और ऐश करने की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए देश में अलग अलग धर्मों में ऐसे
निकम्मे लोगों की बड़ी फौज खड़ी हो गई है। पाखंडी बाबा और तमाम तरह के धार्मिक
परजीवी जीवन गृह त्याग का बहाना बनाकर घुमक्कड़ जीवन अपना कर एक स्थान से दूसरे
स्थान घूमते रहते हैं और जनता के दान से खड़ी की गई धार्मिक संगठनों में ऐश करते
हैं।
तस्वीर प्रतीकात्मक। साभार ट्रेवल न्यूज़ डाइजेस्ट। |
खरबों रूपयों की कमाई में से दो चार करोड़ चैरिटी के स्कूल
और अस्पताल आदि में दिखावटी खर्च करके जनता का भरोसा जीतते हैं। इनमें भारत की
असहनीय गर्मी से बचने के लिए यूरोप और अमेरिका की महीनों के आरामदायक यात्रा भी
शामिल है। वहाँ उन्हें रहने, खाने और ऐश करने की सारी सामग्रियां मुफ्त में हासिल होती
है। अंधे चेले चपटे और धार्मिक संगठनों के पास आफरात का पैसा है जो इनके शोषक
मानसिकता के लक्ष्यों को पूरा करते हैं।
इन सभी का एक ही उद्देश्य होता है कि जीविका के लिए उन्हें कठोर और संघर्ष भरा कर्म न करना पड़े और चढ़ावे, दान और भिक्षा के द्वारा ही जीवन निर्वाह होता रहे। ये परजीवी मेहनतकश जनता का नेतृत्व भी करने के लिए तत्पर रहते हैं। काठ के उल्लू उनका नेतृत्व भी खूब स्वीकार करते हैं।
परजीवियों की शारीरिक मांग के लिए धर्मभीरु और धर्म के नाम
पर परजीवी बनी महिलाओं की भी कमी नहीं है। दुनिया के अधिकतर सेक्स स्कैंडल धार्मिक
लोगों से ही संबंधित होंगे, अगर ऐसे परजीवियों का पोलिग्राफ और नार्को टेस्ट किया जाए।
धार्मिक चोलों से ढके लोगों की सेक्स स्कैंडल की सुर्खियां से अखबार भरे पड़े हैं।
यानी धर्म के आड़ में बिना हाथ पैर हिलाए पेट भरना व अपनी
अन्य इच्छाओं की पूर्ति करना ही इनका उद्देश्य होता है। जबकि हकीकत में इन्हें
धर्म और लोगों की आत्मिक उन्नति से कोई मतलब नहीं होता,
बल्कि वे कई दुर्व्यसनों व दुराचारों में लीन रहते हैं।
लाखों दुराचार में से कभी कभार एक दो दुराचार बंद कमरों से बाहर आते हैं और जनता
उनके बारे में किंचित रूप से जानने लगती हैं।
भारत में 25 लाख स्थान हैं ईश्वर की आराधना करने के लिए, परन्तु स्कूल केवल 15 लाख हैं और अस्पताल हैं मुश्किल से 75000। हमारे देश में 50% टूर धार्मिक तीर्थयात्रा होती हैं। 2 करोड़ 30 लाख लोगों ने पिछले साल तिरुपति बालाजी के और लगभग पौने दो करोड़ लोगों ने वैष्णो देवी और विदेशों में स्थिति धर्मिक स्थलों के दर्शन किये।
मीरा नन्दा अपनी अंग्रेजी की किताब ‘द गॉड मार्केट’ में कर्मों के पूंजीवाद और टेलीविजन वाले संत-महात्माओं
(ईश्वर के एजेंट) के विषय पर लिखती हैं। उन्होंने रहस्योद्घाटन किया कि ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर जो कि 2करोड़ अनुयायी होने का दावा करते हैं,
उनकी अधिकाँश जमीन कर्नाटक सरकार द्वारा दान करी गई है।
नन्दा आगे कहती हैं कि भारतीय राजनीति में धर्म के इस
हस्तक्षेप में बीजेपी के साथ कांग्रेस भी पूरी तरह जिम्मेदार है। उन्होंने बड़े ही
रोचक सबूत प्रस्तुत किये हैं कि किस तरह सरकार धार्मिक कर्मकाण्डों को आर्थिक
सहायता देकर बढ़ावा दे रही है और इसकी वजह से यज्ञ, योग शिविर और मंदिर पर्यटन में नाटकीय ढंग से वृद्धि देखी
गई है। सरकारी सहायता ने मॉबलिचिंग जैसी मानसिकता को बढ़ावा दिया है।
राज्य सरकारों के द्वारा मन्दिरों,
आश्रमों और धार्मिक शिक्षा केंद्र को दी गई सरकारी जमीन में
भी ऐसी ही नाटकीय वृद्धि देखी गई है।