भारत आने पर कार्ल मार्क्स का सामना अत्यंत अनुभवी मनु महाराज से हुआ। रिंग
में दोनों का आमना-सामना हुआ और मनु महाराज ने कार्ल मार्क्स को नॉकआउट पंच से
धराशाई कर दिया। कुछ देर बाद जब कार्ल मार्क्स को होश आया, तो मनु महाराज ने
मार्क्स को अपने हाथों से पकड़ कर उठाया वैसे ही जैसे रेस्लमेनिया में अंडरटेकर ने
शॉन माइकल को हारने पर आदरपूर्वक उठाया।
हारने के उपरांत कार्ल मार्क्स को मनु महाराज की कुछ टर्म एवं कंडीशन मानने को
बाध्य किया और कहा कि अगर यहां अपना अस्तित्व कायम करना है, तो इन शर्तों को मानना
होगा। चूँकि मनु महाराज को यह अंदेशा पहले से ही था कि भारत में कार्ल मार्क्स आने
वाले हैं।
तस्वीर सांकेतिक मात्र है।
शर्त ये तय की गई कि जाति या वर्ण की बजाय फोकस "वर्ग संघर्ष" पर
करना है, वंचित श्रमिकों के नायक-नायिकाओं के बजाय सवर्णो के
नायक-नायिकाओं पर फोकस रखना है। वंचित श्रमिकों को रूस की कहानियां सुनानी है। वंचित
श्रमिकों को धर्म, संस्कृति, कला और दर्शन की ओर नहीं जाने देना है। साथ ही, उनके माइंड
में यह बात बैठा देनी है कि हमारी विचारधारा ही विशुद्ध वैज्ञानिक विचारधारा और
व्यवस्था है, बाकी सब कचरा है।
दुर्गा पूजन समेत वैदिक धर्म के सभी रीति-रिवाज चोरी छिपे निभाने होंगे और
विवाह सम्बन्ध केवल अपनी ही जाति में रखने होंगे। यदि दूसरे सवर्णो से सम्बन्ध हो
जाए, तो कोई बात नहीं, लेकिन वंचित श्रमिकों से तो बिल्कुल भी सम्बन्ध नहीं रखन है।
उन्हें उनकी औकात बराबर दिखाते रहना है। ..और ये फरसा जो मैनें तुम्हें दिया है
इसका इस्तेमाल तुम्हें जहाँ अम्बेडकर लिखा मिले वहाँ करना है।
तदोपरांत सभी शर्त मानने के पर कार्ल मार्क्स ने मनु महाराज के साथ मिलकर
वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यज्ञ कर जनेऊ और 108 पंचमुखी रुद्राक्ष की माला गले में
धारण की।
इस प्रकार कार्ल मार्क्स कहलाए 'मार्क्सकेश्वर चतुर्वेदी'।