इतिहास से अगर आपने कोई सबक लिए होता, तो समाज उत्तरोत्तर
अच्छा होता चला जाता। लेकिन हो तो बदतर रहा है। लेकिन आदमी फिर भी यह नारा लगाना
नहीं छोड़ता कि आदमी इतिहास की गलतियों से बहुत कुछ सीखता है। सीख कहीं नजर नहीं
आती, हजारों साल पुरानी धारणा को तो ब्रेक नहीं लग रहा। यानी कहीं ना कहीं, आदमी
अंधेरे में है। उसके विश्वास टूट नहीं रहे। जब तक पुरानी धारणाओं को ब्रेक नहीं लगता,
तब तक नई जन्म नहीं लेगी।
जब नए
विचार ही नहीं पैदा होंगे, तो नई सोच कैसे पैदा होगी? पुराने फल अगर टूटेंगे ही नहीं, तो नए फल कैसे आएंगे? अब धर्म सिर्फ हजारों साल पुरानी धारणाओं का पिटारा है। धर्म
में पिछले हजार साल में अगर कोई एक नई बात जोड़ी हो तो बताओ। यहीं कारण है कि
धार्मिक देश हमेशा पिछड़े मिलेंगे उनके अंदर आपको कॉमन सेंस भी नदारद मिलेगा।
Courtesy: Mynewsdesk, Photo Peder Gowenius.
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फिर एक
दिन जब मैं मंदिर में गया, तो पुजारी मूर्ति पर दूध चढ़ा रहा था। मैंने बच्चे को
कहा कि तुम भी मूर्ति को दूध से नहलाओ, तो अबोध बच्चे ने फिर सवाल किया कि पापा
शिवजी जी दूध पी तो रहे नहीं।
ये सवाल
सिर्फ बच्चों के है। बड़े लोगों के कोई सवाल नहीं। बड़े होने पर आपके सारे सवाल मर
जाते हैं। बस रह जाता है तो अंधानुकरण। कैसे आदमी में सवेदनशीलता खत्म हो जाती है।
यह नारा लगाना कि इतिहास से हम बहुत सीखते है, कितनी बड़ी मूर्खता है। क्योंकि आपको
सामने दिखने वाली अराजकता, तो नजर आती नहीं।
आपका मन
जरा सा सवाल नहीं करता कि अगर हम इतिहास से सीखते होते, तो समाज आज पतन के कगार पर
क्यों है? यह विश्वास सबसे ज्यादा घातक इसलिए भी है क्योंकि यह आपके
मन की उपज नहीं। यह तथ्य आपके निजी अनुभवों पर आधारित नहीं। यह तो सदियों से चली आ
रही झूठी अवधारणा है। हां! अगर समाज में वर्तमान में बहुत शांति और समृद्धि होती, तब
हम मान सकते थे कि शायद यह कथन आपके निजी अनुभवों का नतीजा है।
आपको
इतिहास की इतनी जबरदस्त जानकारी है, लेकिन इस जानकारी के कारण कोई उपलब्धि तो
दिखाओ।
– जोगा सिंह एवं सोमा पाटिल