संविधान में आरक्षण का प्रावधान
क्यों किया गया है? क्या यह गरीबी उन्मूलन के लिए किया गया अथवा कोई और कारण रहा
है। मेरी समझ में ऐसा इसलिए किया गया कि भारतीय समाज में व्याप्त विषमता को दूर कर, सभी
वर्गों और जातियों के प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित किया जा सके। हम देखते हैं संविधान
की प्रस्तावना में लिखित “सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न
समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा
उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक
और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म
और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की
समानता” की बात
है।
वह इसलिए कि समस्त भारतीय नागरिकों को उपरोक्त
स्वतंत्रा, समानता व न्याय सुनिश्चित की सके। एक न्यायपूर्ण समाज के लिए वंचित
वर्गों को शिक्षा का अधिकार, सरकारी नौकरियां और राजनीति में प्रतिनिधित्व अनिवार्य
मूल्य है, जिससे भारत देश समतामूलक और न्यायसंगत बन सके। साथ ही, देश विकास के पथ
पर सुचारू रूप से चले और देश के लिए सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
इतनी विषमताओं के बीच वर्तमान में आरक्षण एक ज्वलंत मुद्दा है। कई जातियाँ
आरक्षण को प्राप्त करने के लिए आन्दोलन करती रहती हैं। लम्बे समय से सवर्णों के एक
समूह की माँग थी कि आरक्षण को आर्थिक आधार पर किया जाए। अभी आरक्षण को केंद्र सरकार ने, सवर्णों को आर्थिक आधार पर, 10% आरक्षण देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। केंद्रीय
कैबिनेट की सोमवार को बैठक हुई जिसमें यह फैसला किया गया। सवर्णों को आरक्षण
सरकारी शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में प्रवेश के लिए आर्थिक आधार पर दिया
जाएगा। इसका लाभ वे सवर्ण लोग ले सकते हैं। जिनकी वार्षिक आय 8 लाख से कम है एवं 5 हेक्टेयर से कम ज़मीन है।
तस्वीर प्रतीकात्मक बीबीसी से साभार |
यह 10 प्रतिशत आरक्षण मौजूदा आरक्षण OBC
27 प्रतिशत,
ST 7.5 प्रतिशत एवं SC 15 प्रतिशत का कुल 49.5 प्रतिशत आरक्षण के कोटे से आलग होगा। लेकिन संविधान के
अनुसार, 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। इसलिए,
इस आरक्षण को लागू करने के लिए,
सरकार को संविधान संशोधन विधेयक पारित करवाना पढ़ेगा। सरकार
यह विधेयक मंगलवार को ही पेश कर सकती है। क्योंकि सरकार के पास अब ज्यादा समय नहीं
बचा है। शीतकालीन सत्र समाप्ति पर है। ऐसे में सरकार को संविधान संशोधन बिल
मंगलवार को ही दोनों सदनों से पास करवाना पढ़ेगा या शीतकालीन सत्र की समय सीमा
बढानी पड़ेगी।
इसके लिए सवर्णों को आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण देने के लिए संविधान के
अनुच्छेद 15 एवं अनुच्छेद 16 में संशोधन करना पड़ेगा। अनुच्छेद 15
के माध्यम से शिक्षण संस्थानों में आरक्षण दिया जाता है और
अनुच्छेद 16 के माध्यम से नियोजन (नौकरी) में आरक्षण दिया जाता है। जल्द ही केंद्र सरकार
लोकसभा में संविधान संशोधन बिल लेकर आएगी, ऐसी सम्भावना है। इसमें उन सवर्ण जातियों को लाभ मिलेगा जो ब्राह्मण,
राजपूत और अन्य सवर्णों के अंतर्गत आतीं हैं।
काफ़ी लम्बे समय से सवर्णों के एक समूह की माँग थी कि आरक्षण को आर्थिक आधार पर
किया जाए जो पूरा नहीं होने के कारण उनका एक बहुत बड़ा धडा सरकार से नाराज चल रहा
है। अब सरकार ने चुनावी वर्ष को देखते हुए, आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात कर,
सवर्णों को खुश करने की कोशिश की है। देखना यह होगा यह कदम
अंजाम तक पहुँच पाएगा या नहीं। या फिर या सवर्णों के लिए चुनावी झुनझुना साबित
होगा। सवर्णों को आरक्षण दिए जाने का मामला पहले भी कई बार कोर्ट में जाकर अटक गया
है। ऐसे में यदि इसे लागू करना है तो इसके लिए सरकार को सविधान में संशोधन किया
जाना आवश्यक हो गया है।
मेरी समझ में, सवर्णों को आर्थिक आधार पर दिये जाने वाले आरक्षण के लिए,
पूर्व में आरक्षण का लाभ ले रहे अनुसूचित जाति,
अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग को असहमत नहीं होना चाहिए। वह
इसलिए कि सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाएगा, वह पूर्व में निर्धारित
आरक्षण 49.5 प्रतिशत के आलावा होगा। अगर ये आरक्षण लागू होता है,
तो आरक्षण 59.5% हो जाएगा। इससे सवर्ण गरीबों को भी इसका लाभ मिल सकेगा।
जैसा कि लोग तर्क देते रहे हैं, समाज में जातिगत फैले आपसी मनमुटाव में,
संभव हो इससे कमी आए। मैं ऐसा इसलिए नहीं कह रहा है कि
आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना उचित है। बल्कि इसलिए,
समाज में फैले आरक्षण को लेकर लोगों में व्याप्त भ्रम दूर
हो ।
आरक्षण का उद्देश्य सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना होता है। लोगों
ने आरक्षण को सही ढंग से समझा ही नहीं है। जन्म आधारित जाति से,
सत्ता और संसाधनों पर काबिज लोगों ने जानबूझ कर इसप्रकार का
भ्रम फैलाया, ताकि सदैव सारे अधिकार उनके पास बने रहें। हालाँकि इसके कई दुष्परिणाम भारत को
झेलना पड़ा जिसमें एक है बाह्य आक्रमणों
में हार का मुंह देखना।
एक बात समझने की है कि आर्थिक परिस्थितियों से उभरा जा सकता है लेकिन भारतीय सामाजिक संरचना में जातिगत भेदभाव से उबरना बहुत ही कठिन प्रतीत होती है। वर्षों तक देश की बहुत बड़ी आबादी पर उनके कार्य चयन पर प्रतिबंध लगाया गया, उनकी सामाजिक जीवन-शैली पर प्रतिबंध लगाया और उन्हें शिक्षा से वंचित रखा गया। धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, मानसिक आदि हर तरह से उन बहुसंख्यकों को कमजोर बनाकर रखना एक साजिस थी, जिसे उन्हें पिछले जन्मों का धर्म-कर्म का फल बताकर उत्पीडित जीवन जीने के लिए कनविंस किया गया।
शूद्रों, अतिशूद्रों पर हत्याचार कुछ वर्षों के लिए नहीं, बल्कि हजारों वर्षों तक चलता
रहा जो भारत देश के आजाद होने के बावजूद भी, अपना रूप परवर्तित किए हुए बना हुआ है जिसे आज हम आयदिन
देखते,
सुनते, पढ़ते रहते हैं।
इसका परिणाम यह हुआ कि भारत को आज़ादी मिलने के बाद भी अनुसूचित-जाति,
अनुसूचित-जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग के समुदाय का शिक्षा,
राजनीति और सरकारी नौकरी आदि जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में
प्रतिनिधित्व अभी भी बहुत कम है। उनमें से कुछ लोगों ने व्यक्तिगत आर्थिक स्थिति
ठीक कर ली है, पर सामाजिक रूप से वहीं के वहीं हैं।
सभी क्षेत्रों में पहले से सुबिधा-संपन्न
(उच्च समझी जाने वाली जातियाँ) के पास अधिकार रहे हैं और अब भी हैं। इसका आधार आज
भी मूलतः जाति है, जो एक सशक्त और लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए अच्छा नहीं है। एक
सशक्त राष्ट्र का निर्माण सभी वर्गों की समानता में ही है। आरक्षण गरीबी उन्मूलन
कार्यक्रम नहीं हैं। बल्कि प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की प्रक्रिया है। सरकार के
द्वारा आर्थिक आधार पर अनेक योजनाएँ चलाई जा रही हैं। जिनमें सभी वर्गों को लाभ
दिया जा रहा हैं। सरकार के द्वारा अन्य और योजनाएँ भी बनाई जा सकती हैं।
इन सभी विषमताओं को दूर करने एवं शोषितों का उत्थान करने के लिए भारतीय
संविधान में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए आरक्षण का 4
प्रकार से प्रावधान किया गया है। राजनीति में आरक्षण,
शिक्षा में आरक्षण, पदोन्नति में आरक्षण और
रोजगार में आरक्षण। संविधान के अनुच्छेद 330
के अनुसार लोकसभा में, अनुच्छेद 332
के अनुसार विधानसभा में और अनुच्छेद 334
में लिखा है कि प्रत्येक 10 वर्षो में लोकसभा और विधान सभा में मिले आरक्षण की समीक्षा
होगी। इसे लेकर हमेशा गलत सूचनाए फैलाई जाती हैं। आरक्षण को अभी तक ठीक देश में
ठीक से सभी क्षेत्रों में लागू भी नहीं किया गया है। आज भी ज्यादातर नौकरियां निजी
क्षेत्रों में हैं, जहाँ अब भी आरक्षण लागू नहीं है।
अतः इसे लेकर,
आरक्षण प्राप्त लोग समय-समय पर आवाज़ उठाते रहते हैं। ऐसे
में, भारत को यदि समतामूलक समाज बनना है, यदि एक सशक्त राष्ट्र बनना है, तो जाति आधारित आरक्षण तबतक जारी
रहना चाहिए, जबतक जातिवाद की विषबेल नष्ट न हो जाय।