कुछ लोगों ने अपनी व्यक्तिगत नाम,
पद, प्रतिष्ठा, सम्मान, जानकारी, ज्ञान का अहँकार और खुन्नस को समाजसेवा का प्लेटफॉर्म बना
दिया है। लोगों ने गर अपनी बुद्धि और विवेक का सहारा नही लिया तो कुछ होशियारचंद
लोग समाज को अपने सोच के दायरे में समेटकर उन्हें भक्त बने रहने देने में ही समाज
सेवा का डंका पीटते रहेंगे।
यदि व्यक्तिगत मतभेद और अहँकार को लोग तवज्जो देकर सामुदायिक हित को हासिये
में डालेंगे तो हो गया अधिकारों की लड़ाई। अगर एकता नही बना पाएंगे तो सिर्फ झक ही
मारेंगे!
एकता की कीमत पर रूढ़ि और प्रथा बचा कर भी हम संवैधानिक अधिकार नहीं पा सकते।
इसका यह मतलब नही की रूढ़ि प्रथा को कमतर महत्व दिया जाय । रूढ़ि प्रथा ज्ञान और
बोली भाषा में भी वर्तमान और आगामी पीढ़ियों को भी व्यवहारिक स्तर पर प्रशिक्षित और
दक्ष बनाने की कारगर कोशिश की जाय, साथ ही उन्हें वर्तमान चुनौतियों,
संवैधानिक अधिकारों और कानूनों की भी जानकारी से मज़बूत कर
संघर्ष करने के लिए सक्षम बनाया जाय। इस दिशा में KBKS
(कोया बुमकाल क्रांति सेना)
की पूरी टीम के साथियों के सार्थक प्रयास को सादर सेवा जोहार करता हूँ।
लोगों को कोसने और निन्दा करने के कि तुमको ये नही आता/ वो नही जानते/ तुमको
भाषा बोली नही आती/ तुम तो दलाल हो/ फर्जी हो /समाज के धोखेबाज़ हो इत्यादि इत्यादि
कहने के बजाय सुधारात्मक दिशा में कारगर और ज़मीनी प्रयास किया जाना ज्यादा जरूरी
है।
हम बहुत चिल्लाते हैं, गोंडवाना लैंड पाँच महाद्वीपों का भूखंड था। लेकिन
हक़ीक़त में हम भारत मे रहने वाले सभी आदिवासियों को भी एक बैनर तले लाने की बात तो
दूर हम अनुसूचित जनजातियों की सूची में टंगे लोग हम आप एक है कि भावना और साथ
लड़ेंगे संघर्ष करेंगे, और हर हाल में संगठित होकर अपनी और अपने लोगों की रक्षा
करेंगे नही सोच/ कर पा रहे हैं।
पुछल्ले सोच और जानकारी और समझ के दम्भ के बिना पर
सिर्फ असफल प्रयास कर रहे हैं। बस्तर के आदिवासी लोग पूरी परंपरा रूढ़ि प्रथा के
साथ जी रहे हैं। उन्हें कोई भी आदिवासी संगठन बचा क्यों नही पा रहे हैं ज़रा सोचिए?
जो आदिवासी कट्टरता की बात करते हैं उन्होंने आदिवासी शोषण,
अत्याचार, अधिकार और संरक्षण की कोई कानूनी लड़ाई के लिए न्यायालय में
कोई याचिका तक दायर नही किये हैं, बस बेलगाम मंचीय भाषण देकर समाजसेवा कर कर्तव्यों की
इतिश्री कर रहे हैं।
सामुदायिक हित और एकता बनाये रखने के लिए हमे अपने व्यक्तिगत सोच और अहम् को
बिल्कुल भी जगह नहीं देना चाहिए। जब भी सामुदायिक हित की बात हो तो निजी मतभेदों
और द्वेष को भुलाकर संगठित प्रयास किया जाना चाहिए।
जय सेवा! जय जोहार! जय उलगुलान!