क्यों समाज बच्चों को इंसान की जगह धार्मिक बनने की शिक्षा देता है ?

दुनिया के तमाम धर्म सीधे सादे इंसानों को कट्टर और पक्षपाती बनाने का मुख्‍य कारखाना है। तमाम धर्म अपने शार्गिदों को अपने धर्म से प्‍यार और दूसरे धर्म से नफरत करना सिखाते हैं । यह शिक्षा व्यक्ति को बचपन से दी जाती है। बेचारे बच्चे को इंसान बनने की जगह धार्मिक बनने की शिक्षा दी जाती है। जिसका दुशप्रभाव बच्चे के दिमाग में जीवन भर रहता है।


तस्वीर डेली बीस्ट से साभार।

बडा होकर बच्चा अपने को एक इंसान होने पर गर्व करने के बजाय एक धर्म का सदस्य होने का गर्व करता है। ऐसे ही आदमियों को धर्म अपनी व्यावसायिक और व्यक्तिगत स्वार्थ की धार्मिक लड़ाईयों में इंधन की तरह झोंकता है, ताकि धर्म की लड़ाई चलती रहे। धार्मिक लड़ाईयों और दंगों को जिंदा रखने में, ऐसे लोगों का ही वास्तविक योगदान रहता है। ऐसे लोगों के बिना कोई भी धार्मिक लड़ाई एक घंटा भी न चले।

धार्मिक होने का दावा करने वाले इंसान को पोलिग्राफ मशीन में बैठा कर उसके चिंतन, दर्शन और इंसानियत की जॉंच की जाए, तो वह हद दर्जे का घटिया पक्षपाती, दूसरे धर्म के इंसान से ईर्ष्या और नफरत करने वाला इंसान निकलेगा।

धर्म इंसान को अपनी कुपमंडूकता का गुलाम बनाता है। वह दुनिया के तमाम दर्शन और विचारधाराओं से परिचित होने पर रोक लगाता है। वह इंसान को धर्म के पंजे में पकड कर रखता है। भोलेभाले, धर्म-भीरूओं के विवेक को कुंद करना, ब्रेनवाश करना धर्म का प्रथम करतूत है।

हर धर्म अपने ग्रंथ को ईश्‍वर-रचित साबित करने की पूरजोर कोशिश में लगा रहता है। इसके लिए अनेक षड़यंत्र रचे जाते हैं। आवधिक रूप में उसके लिए, धर्म और धार्मिक पोथियों की प्रमाणिकता को सिद्ध करने के लिए चालें चली जाती है। नये नये चाल और षड़यंत्र की मार्केटिंग की जाती है।

दुनिया में अन्‍याय, अत्‍याचार, खून-ख़राबा करने वाले अधिकतर खलनायक, अत्याचारी, हत्यारे धर्म के ही उत्‍पाद होते हैं।

हालाँकि धर्म की नींव चरमराने लगीं हैं। धार्मिक मान्यताओं, विश्वासों और स्वार्थों ने सभ्यता के स्वाभाविक विकास के रास्ते पर अड़ंगा लगाने की बहुतेरे कोशिशें कीं । वैज्ञानिक मानसिकता को हतोत्साहित किया। वैज्ञानिकों को फांसी पर लटकाया। जिंदा जलाया। धर्म की चोंचलेबाजी, अतार्किकता, धंधेबाजी का विरोध करने वालों को रोकने के लिए तमाम गुंडागर्दी किया। लेकिन मानव के वैज्ञानिक विकास को रोकने में तमाम धर्म असफल रहे।

अब वे वैज्ञानिक अनुसंधान से प्राप्त तकनीकों का सहारा लेकर अपने धंधे को बढ़ा रहे हैं, अधिक दिमागों को नयी-नयी पद्धतियों से माईंडवाश करने लगे हैं। जिस विज्ञान का विरोध किया गया उसी विज्ञान को धर्म के धंधे के लिए घोड़ा बना लिया।

तमाम धर्मों को वैज्ञानिक सोच, सत्‍य की खोज और वैज्ञानिक सत्य की बातें करने वाले विवेकवान लोगों से बहुत भय लगता है।

परजीवियों द्वारा प्रतिपादित धर्म परजीविता को बनाए रखने और श्रमिक वर्ग के श्रम का निरंतर शोषण करने का एक कामयाब मॉडल के सिवाय और कुछ नहीं है।

परजीवी धर्मों का एक ही नारा है, तू खूब श्रम कर और तुम्हारे श्रम से मिले मूल्य को तुम धर्म के नाम पर मुझे दान कर। तुम्हारे दिल और दिमाग को मेरे धर्म के लिए आरक्षित रख और मेरे स्वार्थ की रक्षा कर। तू अपने दिल और दिमाग का स्वामी नहीं, बल्कि तू मेरा गुलाम है।



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