इंसानों की उत्पति का धार्मिक सिद्धांत क्या संस्कृति विरोधी है?


धार्मिक कहानियों के अनुसार इंसानों का जन्म एक आदमी और एक औरत के संसर्ग से हुआ है। इस हिसाब से सभी इंसान एक दूसरे के भाई बहन हुए। अब समझ नहीं आ रहा कि ये भाई बहन सब कुछ जानते हुए भी एक दूसरे संग शादी क्यों करते हैं। क्या आपने इसके बारे में गौर किया है?

क्या भाई बहन का विवाह करना संस्कृति के विरुद्ध नहीं है? या फिर इंसानो के जन्म की कोई और कहानी है, जिसको धार्मिक कहानियों ने छुपा लिया है। वैसे में, धार्मिक कहानियाँ इस बात में खुद को ही गलत साबित करती हैं। उनकी कहानियाँ सभी इसानों को एक दूसरे का भाई बहन सिद्ध करती हैं, फिर भी भाई बहन की शादी करवा दी जाती है। फिर संस्कृति न जाने कहां चली जाती है।

अब वैज्ञानिक थ्योरी की बात करें, तो धरती पर एक इंसान नहीं बना, बल्कि अनगिनत जीव बने, जो विकास की प्रकिया में विकसित होते होते, विभिन्न प्रकार की प्रजातियों में तब्दील होते गये। इसका परिणाम हुआ कि प्रकृति में कई प्रकार के जीव बने अब हम इन्सान की बात करें, तो हम सब अलग अलग हैं। कहीं गोरे हैं, कहीं काले, कही छोटे हैं, तो कहीं बडे। यानि कि इंसानों की उत्पति एक इंसान से नहीं हुई, अगर हुई होती तो सभी इंसानों का रंग रुप ऐक जैसा होता।

अगर आप धार्मिक थ्योरी अपनाते हैं, तो इसका मतलब आप उस इंसान से शादी कर रहे हैं, जो आपका भाई अथवा आपकी बहन है, जो कि समाज की नजरों में सरासर गलत है; जबकि उस समाज की उत्पति भी इसी गलत भाई बहन के रिश्ते से हुई है।

अब ये निर्णय आपको लेना  है कि आप अपनी जिंदगी धार्मिक कहानियों के हिसाब से चलाते हैं या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से।

सुदेश बघेल

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