ईश्वर, इंसान और रोबोट वाली सच्ची कहानी

ईश्वर और इंसान में एक बहुत बड़ी समानता है वे दोनों दिखाई नहीं देते। ये दोनों परिकल्पनाओं के नाम है और ये दोनों नहीं होने के कारण कुछ करने में अक्षम हैं। मेरे देखे इस जगत में पाए जाने वाले जीव चार प्रकार के हैं। सूक्ष्म जीव, बृक्ष, जानवर और रोबोट जीव। सूक्ष्म जीव और बृक्ष से ज्यादा स्मृति, समझ और संवेदना जानवरो में है। इसीलिए वह इनसे ऊपर है।

अगर आप किसी एक कुत्ते को मारें तो वह दोबारा आपके पास नहीं आएगा क्योकि उसे इतना याद रहता है कि उसे तकलीफ देने वाला कौन था। अगर आप किसी पक्षी को दाना डालते हैं तो वे सहज आपके पास आने लगते हैं क्योंकि वे याद रख पाते हैं कि उनकी भूख मिटाने में किसने सहायता पहुचाई थी।


इन जानवरों में संवेदनाएं भी होती हैं एक हांथी का बच्चा नदी में बह रहा था और उसकी माँ उसे बचा नहीं पा रही थी तब कुछ नर हांथीयो ने उस बच्चे को बचाने में मदद दी थी। एक चीता जो बंदर के बच्चे को पालने लगता है यह तो आप सबने देखा ही होगा। ऐसे ही ढेरो उदाहरण हमारे चारों ओर देखने मिल जाते हैं किसी बंदर के मुसीबत में पड़ने पर उसका सारा झुंड आकर उसकी मदद को तैयार हो जाता है।

अगर हम इंसान की बात करें तो वह इन सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ इसीलिए कहा जाता है क्योंकि उसमें स्मरण और संवेदना अन्य सभी जीवों की तुलना में ज्यादा है। और इससे भी ऊपर अगर हम किसी को रखे तो वह ईश्वर है। क्योंकि उसमे सब कुछ जानने, समझने, याद रखने की क्षमता है क्योंकि वह संवेदना के सबसे उन्नत शिखर पर विराजमान है, क्योकि वह महा करुणावान है।
लेकिन यह केवल कल्पित है क्योंकि ऐसी कोई चीज आज तक किसी ने नहीं देखी। पर मैं कहता हूं इंसान भी तो कल्पित ही है क्योंकि मुझे इंसान भी ईश्वर की तरह कहीं नजर नहीं आता। प्रायः जिसे इंसान कहा जाता है वह तो एक तरह का रोबोट जीव है जो इंस्ट्रक्शन फॉलो करने के अलावा कुछ नहीं करता। जिसकी स्मरण शक्ति अत्यंत कमजोर है और संवेदना के नाम पर वह शून्य है।

मुख्यतः इस रोबोट में चार प्रकार के सॉफ्टवेयर होते हैं जिनसे कमांड पाकर वह संचालित होता है। धर्म, संस्कृति, सरकार और व्यापार। और इस तरह इस रोबोट के चार हिस्से हो जाते है। धार्मिक, सामाजिक, नागरिक और व्यापारिक। रोबोट का धार्मिक हिस्सा किन्ही अदृश्य टूल को पाने के लिए विभिन्न मान्यताओ का शिकार रहता है। उसे लगता है यह टूल पाकर वह इसके माध्यम से सब कुछ पा लेगा। उस टूल का नाम है पुण्य।

धार्मिक रोबोट तैयार करने वाली अनेको दुकाने पृथ्वी पर मौजूद है जो विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेर रोबोट में डाउनलोड करती हैं। सबसे ज्यादा डाउनलोड किये गए सॉफ्वेयर इस्लाम, ईसाई , हिन्दू, बौद्ध, जैन, यहूदी, सिक्ख इत्यादि हैं।
रोबोट का सामाजिक हिस्सा सामाजिक रूप से सही दिखने और सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए दिन रात संघर्ष रत रहता है। जैसा उसके आसपास की रोबोटिक भीड़ करती है यह भी उसी का अनुशरण करते हुए चलता है। इसमें भीड़ नाम का सॉफ्टवेयर डाला जाता है। जबकि सरकारी रोबोट को सरकार और उसके बनाये कानून के हिसाब से चलना होता है। उसे सरकारी कमांड फॉलो करने के लिए तैयार किया जाता है। उसमे भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, चीन आदि नाम का सॉफ्टवेयर अपलोड किया जाता है।

व्यापारी रोबोट में फायदे और नुकसान के हिसाब से कमांड डाली जाती है। इसमें कॉरपोरेट नाम का सॉफ्टवेयर इस्तेमाल होता है। इन्ही चार रूपो में गुलाम तैयार होते हैं और गुलाम तैयार करने की सबसे बड़ी शर्त यह है कि मनुष्य में चेतना का पूर्ण अभाव कर दिया जाए और उसे कमांड फॉलो करने वाली मशीन बनाकर शासन किया जाए।
इन सभी की कुछ मान्यताएं होती है और मान्यताओ को पुष्ट करने वाले रोबोट को इनाम के तौर पर तरक्की मिलती है। जैसे धार्मिक रोबोट को उसके धर्म की मान्यताएं पुष्ट करने पर इनाम मिलता है।
यदि धर्मिक मान्यता लिंग कटाने की है तो कटवा लो, मूतते वक्त कान में धागा लपेटने की है तो लपेट लो, या नंगे घूमने की है तो नंगे घूमो। कहीं चोटीधारी ज्ञानी माना जाता है तो कही टोपी धारी, कोई अरबी बोलकर होशियार बनता है तो कोई संस्कृत बोलकर।

ठीक इसी प्रकार कारपोरेट की भी मान्यताएं हैं जैसे यहां टाईधारी इंटेलिजेंट समझा जाता है और अगर फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है तो जीनियस कहलाता है। धार्मिक रोबोट से सबसे ज्यादा फायदा साधु, संत, मौलवी, पादरी जैसे लोगो को मिलता है। सामाजिक ठेकेदार सामाजिक रोबोट पर राज करते हैं। सरकार के काम रोबोट का सरकारी हिस्सा कर देता है। और मालिक व्यापारी अपने एम्प्लोयी को गुलाम बनाकर काम चला लेता है। मनुष्य की समझ, स्मरण शक्ति, और संवेदना इतनी शून्य है कि उसे मनुष्य कहना महा झूठ है।

अभी हाल ही में अमृतसर में हुई घटना में 120 लोग भयंकर ट्रेन हादसे का शिकार हुए और मारे गए। लेकिन अभी भी ये सारे लोग यह सब भूलकर तरह तरह के धार्मिक और सरकारी डंडों से हांके जाएंगे। 
अभी एक व्यक्ति का सड़क पर एक्सीडेंट हो गया जिसमें उसकी बीबी और बच्ची बुरी तरह घायल हो गए थे। वह घंटो तक वहां से निकलने वाले रोबोटों से मदद की गुहार लगाता रहा। घायल अवस्था मे दो घण्टे चिल्लाने के बाद किसी रोबोट के भीतर का इंसान नहीं जागा। आखिरकार उसकी बच्ची और बीबी तड़प तड़प कर मर गए। वहां से निकलने वालो में किसी के पास समय नहीं था। 

आखिर सभी को अपने बीबी बच्चो को पालना होता है साहब, रोजी रोटी कमानी होती है। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि बीबी बच्चो को पालना क्यो पड़ता है? मैं तो नहीं समझ सका आप जरूर समझते होंगे। क्योंकि रोबोट इस तरह की बाते बहुत अच्छे से समझते हैं।

एक और घटना में 12 साल की संतोष कुमारी भूख से तड़प तड़प कर मर गयी क्योकि उसकी माँ के पास भोजन के लिए धन नहीं था और कोई रोजगार न होने के कारण वह परिवार सरकारी राशन पर ही आश्रित था। (रोजगार इस दुनिया की बड़ी से बड़ी बुराई है लेकिन यह बात आज तक एक को भी समझ नही आ सकी है) उसका राशनकार्ड आधार से लिंक नहीं होने के कारण उसे राशन नहीं दिया गया। वह स्कूल के मिड डे मील से भोजन पा सकती थी लेकिन दुर्गा पूजा के कारण स्कूल बंद था और सभी, अदृश्य दुर्गा के दर्शन कर सकने वाली अलौकिक शक्ति से संम्पन आखों के साथ पूजा में इतने व्यस्त थे कि एक मासूम की भूख न देख सके।

सबसे मजेदार बात तो यह कि जब यह मामला मीडिया तक पहुँचा तो गांव वालों से उस औरत को ही गांव से निकाल दिया क्योकि उसकी वजह से सारे गांव का नाम खराब हो रहा था। मनुष्य की संवेदन शून्य अवस्था का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है। लेकिन इससे भी बड़ा उदाहरण पाकिस्तान का है जहां आसिया बीबी नाम की महिला को आठ साल जेल की सजा देने के बाद भी मार डालने को सारी जनता पागल हुई जा रही है।

शायद उसका दोष मुहम्मद और जीसस को बराबर कहना है। मरे हुए लोगो की श्रेष्ठता में तुलना करने की बेवकूफी इंसान तो कर नहीं सकता सिर्फ रोबोट ही कर सकते हैं। न जाने कितनी संतोषी और कितनी आसिया इस रोबोट भीड़ का शिकार होती हैं। मर चुकी संवेदनाओं, जड़ हो चुकी चेतनाओं, बिखर चुकी स्मरण शक्ति और अजन्मी समझ वाले इन इंसानों के पास वक्त की बहुत कमी है यह रोबोट बहुत व्यस्त रहता है भाई।
लेकिन यह व्यस्तता सिर्फ असहाय लोगो की मदद के समय ही होती है क्योंकि वह तीर्थ यात्राओं के महीनों का समय खर्च कर सकता है हज के नाम पर वह पूरी तरह फ्री है, मूर्ति रखकर पानी मे बहाने के लिए उसके पास कभी समाप्त न होने वाला समय है।

इस रोबोटिक गिरोह को हज में मरने वाले याद नहीं, केदार नाथ में मरने वाले याद नहीं, कुम्भ में मरने वाले याद नहीं, अमृतसर रेल हादसे में मरने वाले याद नहीं

धार्मिक कारणों से देश के टुकड़े करते समय हुई हत्याएं याद नहीं। पूर्वजो के आजादी के लिए किये संघर्ष को यह भूल चुका है लेकिन ठहरिए जनाब इसकी स्मरण शक्ति इतनी भी कमजोर नहीं है। इसे याद है गणेश कब और कैसे पैदा हुए, इसे याद है राम ने रावण को क्यो मारा, इसे याद है चौदह सौ साल पहले अल्लाह ने नवी के माध्यम से क्या कहा था।

इन्ही कारणों से हमारे कंधों पर न जाने कितने पादरी, मौलवी, साधु नामक ठगों का बोझ है। ये हमारी चेतना को मारकर हमे रोबोट बना देते है और उसमें धर्म नाम का सॉफ्टवेयर लोड कर देते हैं ताकि हम केवल और केवल उनके अनुसार ही वर्ताव कर सकें।
हमारे पास किसी निर्धन को देने धन नहीं लेकिन हमने मंदिरों मस्जिदों को खजाने से भर रखा है, हमारे पास किसी बेघर को देने घर नहीं लेकिन हमने भगवान अल्लाह के घरों को गगन चुम्बी बना रखा है। हमे सीता का दर्द तो दिखता है लेकिन हमें किसी तन बेचती जीवित लड़की का दर्द नही दिखता, हमे पत्थरो में ईश्वरीय जीवंतता दिखाई दे जाती है लेकिन मासूमो के भूख से तड़पते उदास चेहरे दिखाई नहीं देते

हमे कुरान, बाइबिल, गीता की ईश्वरीय भाषा तो पढ़ लेते हैं लेकिन विकलांग बना दिये गए भीख मांगते हुए बच्चे के चेहरे की पीड़ा को नहीं पढ़ पाते।
कॉरपोरेट रोबोट की बात करें तो इधर शोषण के सिवा कुछ नहीं है। शोषण करो और तिजोरी भरो इस जगत का फार्मूला नंबर वन बन चुका है। बॉस इज ऑलवेज राइट जैसी कहावते इसी कारपोरेट की देन हैं।

तभी तो हजारो बच्चे भीख मांग रहे हैं हजारो बूढ़े मौत का इंतजार कर रहे है, हजारो परिवार विस्थापन की त्रासदी झेल रहे हैं, हजारो लोग दो वक्त का खाना और दवा के लिए दर दर भटक रहे है और वही एक परिवार (अम्बानी) 51 अरब के घर मे रहता है, कोई फुटपाथ पर आसरा ढूढ रहा होता है कोई नाले में घर बना रहा होता है तो कोई नोट की गड्डियों में सो रहा होता है।

कोई कूड़े के ढेर में बेचने की वस्तु ढूढ रहा है कोई तन बेच रहा है , कोई जमीर बेच रहा है, कोई देश बेच रहा है। क्योकि बेचना यहां सर्वाइवल है। एक की विपन्नता दूसरे की संपन्नता का कारण बनती है, एक का दुख दूसरे का सुख बन जाता है, किसी का कष्ट किसी को आनंद दिला जाता है।
लेकिन यह सब अबाध जारी रह सकता है क्योंकि तथाकथित इंसान नाम के इस रोबोट में व्यापार सॉफ्टवेयर इंस्टाल है।

रोबोट का सामाजिक हिस्सा संस्कृति और परम्परा के लिए जान दे सकता है जान ले सकता है। इसका एक ही नारा है परम्पराये जिंदा रहे इंसान मरता रहे। दो अलग अलग जातीय सॉफ्टवेयर वाले रोबोट साथ नहीं रह सकते उन्हें सजातीय शादी ही मंजूर है। 
भीड़ कार ले आये तो कार खरीदो, भीड़ शादी में खर्च करे दहेज दे तो खुद को बेचकर भी दहेज दो, खर्च करो। भीड़ महंगा कार्ड बांटे, आमंत्रण बताशे हल्दी से करे तो उसी से करो। बुरका पहनाये तो बुरका पहनो, बिछिया पहनाये तो बिछिया पहनो। और लिंग काट दे तो सुन्नत समझो। संस्कृति बच जानी चाहिए समझ मर जानी चाहिए की तर्ज पर जीना इसका प्रमुख शगल है। सरकारी विभाग घूस लेने का अड्डा बन जाये या न्यायालय अन्याय के घर। लेकिन चलो उसी तरह जैसे भीड़ चल रही है।

यह सब बेबाक जारी रह सकता है क्योंकि रोबोट सामाजिक है। सरकारी रोबोट सरकार को अधिकतम फायदा पहुचाने वाली व्यवस्था है। जिसमे कोई कानून क्यो बना, कैसे बना इसकी कोई समझ किसी मे नहीं है। कोई केस सदियों से चल रहा है लेकिन वह घर अब भी न्यायप्रिय कहा जा रहा है।

संविधान वकीलों जजो को भी याद नहीं लेकिन वह अब भी महान है। जब नियम ही तुम्हे पता नहीं तो तुम पालन क्या खाक करोगे। लेकिन तुम्हे संविधान विरोधी बनाकर रखा जाता है जनाब ताकि जब कभी तुममे इंसानियत जागे, विद्रोह के पर लगे तुम्हे उसी वक्त किसी कानूनी जाल में फसाकर लोहे की जंजीरों में कैद किया जा सके।

अनपढ़, गवार, अपराधी चुनाव टिकिट लेकर तुम्हे वोट का महात्व बताते है। अरबो डकार कर संसद में टेबिल बजाने की मधुर धुन में मस्त कर देने की क्षमता से संयुक्त लोग ही गद्दी में बैठाने को उपयुक्त नजर आते हैं। क्योंकि तुम एक सरकारी रोबोट हो जो सरकार के डंडों से हांका जाएगा।

तुम्हारे धार्मिक कहे जाने वाले साधु संतों के साथ मिलकर तुम्हे तुच्छ जीवन जीने को मजबूर कर देने वाले लोग तुम्हे प्राण प्रिय हो जाते है और तुम्हे इसकी भनक तक नहीं लगती। धार्मिक रोबोट धार्मिक गुलामी से कभी मुक्त नहीं हो पाता, सामाजिक रोबोट सामाजिक मान्यताओं के भ्रम जाल को नहीं काट पाता

सरकारी रोबोट सरकारी इशारों का मोहताज होता है तो व्यापारी रोबोट चन्द सिक्के जोड़ने में जीवन लीला का अंत कर लेता है। कई बार चारो सॉफ्टवेयर से निकले कमांड एक दूसरे के विपरीत भी पड़ते हैं।

हिन्दू रोबोट सभी दिमागों में हिन्दू साफ्टवेयर डालना चाहता है तो मुसलमान इसके लिए चौदह सौ सालों से तलवार उठाये है। यही रोबोट जागने की बात भी बहुत जोर से करता है। जागो हिन्दू जागो, जागो भारत जागो, जागो ग्राहक जागो, जागो मतदाता जागो। असल में ये और गहरी नींद सुलाने वाले ट्रंकोलाइजर से ज्यादा कुछ नहीं।
लेकिन अगर कोई इंसान इनके बीच मे पैदा हो जाये और वह इन्हें जगाने की कोशिश करे तो ये सारे आपस में परम विरोधी होने के बावजूद उस इंसान के खिलाफ जरूर हो जाते हैं। और इंसान को जल्दी ही सूली देने का पूर्ण प्रयास भी किया जाता है।

यही है मनुष्य!!!!

ना समझ, स्मरणहीन, संवेदना शून्य। इन चार प्रकार की शाश्वत गुलामी का पैरोकार। इसीलिए यह रोबोट है। इंसान और ईश्वर का कोई अस्तित्व नहीं जबकि रोबोट शाश्वत सत्य है। आपके भीतर कौन सा सॉफ्टवेयर ज्यादा सक्रिय है मुझे कमेंट में बताएं।


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