आखिर बलात्कार के लिए जिम्मेदार कौन है?


इन दिनों बलात्कार के मामले अखबारों और न्यूज़ चैनलों में सुर्खियाँ बन रहे हैं। एक के बाद एक ऐसे मामले रुकने के नाम हीं नहीं ले रहे। ऐसा नहीं है कि अभी कुछ दिनों से बलात्कारों की संख्या में एकदम से बढ़ोत्तरी हो गई हो, बल्कि ये घटनाएं लम्बे समय से जारी हैं, पर शायद घटनाओं की रिपोर्टिंग बढ़ गयी है। इसका एक कारण शिक्षित लड़कियों का अपने प्रति हो रहे शोषण के प्रति हिम्मत दिखाना हो सकता है। साथ ही समाज का किसी भीवत्स घटना के प्रति उद्वेलित एवं आक्रोशित होकर न्याय के पक्ष में खडा होना भी हो सकता है, यह आज लोगों की इन्टरनेट के उपयोग से मीडिया में आसान पहुँच संभव दीखता है। मीडिया का भी ऐसी घटनाओं का दिखाना लोगों द्वारा ऐसी घटनाओं से भावनात्मक रूप से जुड़ना हो सकता है। जनता के उस भावनात्मक रुझान को देखते हुए प्रमुखता से, प्रतिक्रिया को उभार कर ताबड़-तोड़ रिपोर्टिंग से अपनी टीआरपी बढ़ाने की चाह है शायद।

बलात्कार के मामलों में बहुत कुछ हमारा समाज और परिवार ज़िम्मेदार है। हम अपनी लड़कियों को तो कई संस्कार सिखाने को उतावले होते हैं और कई बार तो चेतावनी तक देते हैं। कहते हैं यह नहीं सीखोगी तो ससुराल में ऐसा होगा, वैसा होगा। क्या लड़कों के साथ हम ऐसा ही व्यव्हार व दृष्टि अपनाते हैं? इस तरह से लड़कों से बात करनी है। इस तरह से नहीं करनी। इस तरह के कपड़े पहनने हैं। कितना बोलना हैं, कितना नहीं बोलना इत्यादि।

हम अपने लड़कों को यह तो सिखाते हैंकिसी तरह के पचड़े में नहीं पड़ना लेकिन हम ये नहीं सिखाते लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार करना हैउसे सम्मान देना है और बराबर समझना है। भेदभाव वाली मानसिकता कोई एक दिन में नहीं बनती। ऐसी सोच कई वर्षों की संस्कृति का परिणाम होती है, जो अंततः शोषण और भेदभाव को पैदा करती है। एक को श्रेष्ठ और दूसरे में हीन भावना भरती है। बलात्कार तो इस गैर बराबरी और शोषण का एक लक्षण मात्र है। 


अगर हम चाहते हैं, हमारी लड़की के साथ दुर्व्यवहार न हो तो हमें अपने लड़के को भी नैतिक शिक्षा देनी होगी। लड़कों को यह बताना पड़ेगा कि लड़कियाँ उतनी हीं सक्षम हैं जितना वे। न सिर्फ बताना पड़ेगा, बल्कि दैनंदनी के कार्यों में उसे सिखाना भी चाहिए। मसलन घर के काम काज जैसे खाना बनाना, झाड़ू-पोछा लगाना, कपडे साफ़ करना, बच्चों की देखभाल करना आदि के प्रति लड़कों को भी उतना हीं जिम्मेदार बनाएं जितना लड़की को।

यह भी सत्य है कि प्रकृति ने हमें इस प्रकार बनाया है कि एक उम्र के बाद सामान्य तौर पर हम सभी लड़का-लड़की को यौन संबंध बनाने की इच्छा होती है। यह संतानोत्पति के लिए तथा वंशवृद्धि के लिए जरुरी भी है। इसका यह मतलब यह नहीं कि किसी के साथ जबरदस्ती की जाय। बिना आपसी सहमति के यौन संबंध बनाना न केवल अनैतिक है बल्कि क्रूरतापूर्ण व्यवहार एवं अपराध भी है। अगर दोनों लड़का-लड़की बालिग हैं और दोनों आपसी सहमती से यौन संबंध बनाते हैं, तो समाज को इसकी मंजूरी भी देनी चाहिए। आखिर इसमें हर्ज ही क्या हैयदि वे किसी को नुकसान पहुंचाए बिना प्रकृति प्रदत सेक्स करने के आनन्द को उठाना चाहते हैं। ऐसे में, इसमें समाज को अपना नजरिया बदल लेना चाहिए। पति-पत्नी को चाहिए कि एक दूसरे से संतुष्ट रहे  अगर उनके बीच आपस में निभाना मुश्किल हो रहा हो तो तलक देकर, दूसरे जीवन साथी को चुन सकते हैं। 

सेक्स को एक उम्र के बाद, कण्ट्रोल करना खतरनाक हो सकता है क्योंकि यह कटु सत्य है कि जिस चीज की हम तीव्र लालसा करते हों और वह न मिले, तो उसके प्रति आकर्षण तथा आसक्ति बढ़ जाती है। न मिलने पर व्यक्ति अनैतिक तरीके से उसे हासिल करने तक की कोशिश करता है। ऐसे में, हमें समाज में बलात्कार होने के कारणों की मनोवैज्ञानिक पड़ताल करनी चाहिए और मानसिक कारणों को जानकर उसका इलाज ढूंढना चाहिए और उसके प्रति समाज में फैली भ्रांतियों को भी दूर करना चाहिए। यह बताने की नितांत आवश्यकता है कि सेक्स कोई पाप की चीज नहीं है।

भारत सरकार ने बलात्कार के आरोपी कोयदि लड़की की उम्र 12 साल से कम है, तो उसे फाँसी देने तक का भी प्रावधान कर दिया है। अपराधी को फाँसी देने के ऐवज में पुलिस प्रकिया एवं त्वरित न्याय व्यवस्था में सुधार ज्यादा कारगर सवित हो सकता है। लेकिन सवाल ये उठता है, किसी ख़ास धर्म का बलात्कारी(कठुआ) होने पर तिरंगा लेकर उसके पक्ष में खड़े होना तथा किसी ख़ास धर्म की लड़की(गीता) के साथ बलात्कार होने पर ही सिर्फ उसकों न्याय की मांग करना सही हैजबकि बलात्कार तो बलात्कार होता है। अपराधी को सजा मिलनी ही चाहिए ताकि अन्य के लिए सबक का कार्य करे।  

कई मामलों में बलात्कार पीड़िता शर्म की बजह से शिकायत दर्ज नहीं करतीं। इसके लिए भी हमारा समाज जिम्मेदार है। जिसके साथ दुर्व्यवहार होता है, उसी को गलत नजरों से देखा जाता है। कभी-कभी तो उसको इतना घात लगता है कि आत्महत्या तक कर लेती है। जिसमें उसका अपना कोई दोष नहीं है। वहीं अपराधी को मामूली घटना से जोड़ा जाता है। समाज ने इस अपराध के प्रति बिल्कुल उलट सोच विकसित की है जो लड़कियों को आन्तरिक रूप से कमजोर कर देती है।

बच्चों के मामले में, दर्ज शिकायतों से ये सावित हो चुका है कि ज़्यादातर मामलों में परिवारपड़ोसी एवं रिश्तेदार ही होते हैं। ऐसे में  परिवारों की ये जिम्मेदारी होनी चाहिए अपने बच्चों को अच्छे-बुरे स्पर्शों का ज्ञान कराए और उन्हें बताए कि अगर आप को किसी के स्पर्श से असहज महसूस हो रहा है तो ‘ना’ करें। चिल्लाकर अपने किसी करीबी, परिवार वाले अथवा जिसपर भरोसा करते हैं उसको बतायें। 

लड़का-लड़की को लेकर के समाज में अनेक धारणाए हैं। लड़कियों को जीन्स नहीं पहननी चाहिए। लड़की की ना में ही हाँ है। अकसर शारीरिक बल प्रयोग वाले कार्य कोई लड़का नहीं कर पाता अथवा अनिच्छा प्रकट करता है, तो उसे ताना दिया जाता है, “तू तो लडकियों से गया गुजरा है।” कई बार लड़का द्वारा छेड़खानी के मामले में, यदि लड़की सख्ती दिखाती है, तो उसके साथी कहते हैं, “लड़का होकर लड़की से डरता है।” ऐसी धारणाएं लड़के में लड़की से उच्च होने का अहंभाव पैदा करती है जो आगे चलकर शोषण का रूप ले लेती है।

समाज में कोई अन्याय दूसरों के साथ होता है तब उसे लगता ही नहीं कुछ गलत हो रहा है। तब वह धर्मजातिसमुदाय, रिश्तेदार, पार्टी आदि को देख कर प्रतिक्रिया करता है। जब यही बलात्कार जैसी घटना उसके किसी करीबी के साथ होती है तब उसे इसकी गंभीरता का एहसास होता है। कई बार ऐसे मामलों में जब व्यक्ति के अथवा परिवार वाले के साथ ऐसी घटनाएं होती हैं तथा आकस्मिक मदद व न्याय के लिए व्यक्ति के समर्थन व सहयोग की आवश्यकता होती है एवं कोई साथ खड़ा नहीं होता, तो लोग बेबस होकर टूट जाते हैं।

शोषण जैसी स्थिति ज्यादातर कमजोरों के साथ घटित होती है। जब अपराधी को एहसास हो जाता है कि जिसके साथ वह जबरदस्ती कर रहा है, वह उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती या ऐसी स्थिति पर वह नियंत्रण कर सकता है, उस स्थिति में वह ज्यादा आक्रामक हो जाता है। यही कारण है, बलात्कार जैसा कुकृत्य कम उम्र की बच्चियों, सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति के साथ अत्यधिक होता है। अज्ञानता और सामाजिक दवाब के कारण कई व्यक्ति शोषण के प्रति आवाज नहीं उठा पाते। कुछ व्यक्ति शिकायत दर्ज करते हैं लेकिन कोर्ट की लम्बी प्रक्रिया, शोषक का दबाव एवं शिकायतकर्ता को त्वरित सुरक्षा न मिलने की स्थित में लोग अपने मामले को वापिस ले लेते हैं। इस प्रकार से शोषकों का और मनोबल बढ़ जाता है।

कुछ लोग बलात्कार होने पर दोषी को सजा दिलाने और उसके चरित्र पर सवाल उठाने की जगह, लड़की जिसके साथ शोषण होता है, उसी का चरित्र हनन करते हैं और बेतुके सवाल करते हैं। मसलन लड़की ने कपडे ही ऐसे पहने थे कि लड़के अपना नियंत्रण नहीं रख पाए या लड़की ही अपने पहनावे से लड़कों को उकसाती है। लड़की इतनी रात गए कहाँ घूम रही थी। लड़की तो बदचलन थी, उसके कई पुरुषों से सम्बन्ध थे। इस तरह की बातें पीड़िता को न्याय दिलाने की जगह उसके जीवन को मुश्किल बनाती है और उसे उल्टा कटघरे में खड़ा करती है। समाज द्वारा बलात्कार पीड़ितों के चरित्र हनन के कारण ही लड़कियाँ आत्महत्या तक करने को बाध्य होतीं हैं।

–  शेषनाथ वर्णवाल 

(इस लेख में वर्णित विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं।)

तस्वीर प्रतीकात्मक इंडिया टाइम्स से साभार।

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