हम यह समझते हैं कि समाज में नए बदलाव के लिए नए विचार और
दृष्टिकोण की ज़रूरत होती है। इसके लिए लोगों को तर्कशील और वैज्ञानिक तरीके से सोचना जरूरी है। उसके बिना कोई बदलाव समाज में मुश्किल है। पुरानी परम्पराओं, व्यवस्थाओं और यथास्थितिवाद से किसी भी समाज अथवा ज्यादातर
इंसानों का मोह होना स्वाभाविक है। वह इसलिए कि सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव के
लिए सबसे पहले खुद में बदलाव करना जरुरी होता है, और खुद में बदलाव करना कष्टप्रद
होता है। हालाँकि पुरानी व्यवस्था को स्वीकार करना आसान होता है।
भारत में जिस प्रकार अंधश्रद्धा, किस्मत, पुनर्जन्म, जातिवाद, पितृसत्ता आदि का बोलबाला सांस्कृतिक रूप से जडें जमाये है, ऐसे में इसे तोड़ पाना और भी आसान नहीं है। भले ही व्यवस्थाएं शोषणपरक बनी रहें, सत्ता पर चंद लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी कायम रहें अथवा संसाधनों का गैर-बराबरी से बंटवारा हो। फिर भी, लोग हैं कि उसे नियति समझ बैठे हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि समाज में युवाओं, बौद्धिक जनों, अनुभवशील लोगों द्वारा परिवर्तन के लिए बात शुरू की जाय, जो नए समाज की रचना के लिए बहुत जरूरी है। ‘तर्कशील भारत’ एक छोटा प्रयास है ऐसी चर्चा शुरू करने और विचारों के प्रसार का, जो बिना आपके साथ और समर्थन के मुश्किल है। इस प्रयास को आगे ले जाने में, आपके सहयोग की उम्मीद करते हैं।
भारत में जिस प्रकार अंधश्रद्धा, किस्मत, पुनर्जन्म, जातिवाद, पितृसत्ता आदि का बोलबाला सांस्कृतिक रूप से जडें जमाये है, ऐसे में इसे तोड़ पाना और भी आसान नहीं है। भले ही व्यवस्थाएं शोषणपरक बनी रहें, सत्ता पर चंद लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी कायम रहें अथवा संसाधनों का गैर-बराबरी से बंटवारा हो। फिर भी, लोग हैं कि उसे नियति समझ बैठे हैं। ऐसे में ज़रूरी है कि समाज में युवाओं, बौद्धिक जनों, अनुभवशील लोगों द्वारा परिवर्तन के लिए बात शुरू की जाय, जो नए समाज की रचना के लिए बहुत जरूरी है। ‘तर्कशील भारत’ एक छोटा प्रयास है ऐसी चर्चा शुरू करने और विचारों के प्रसार का, जो बिना आपके साथ और समर्थन के मुश्किल है। इस प्रयास को आगे ले जाने में, आपके सहयोग की उम्मीद करते हैं।